देश की दुर्दशा दुर्जनों की दुर्जनता से नहीं, बल्कि सज्जनों की निष्क्रियता से हुई !
दिसंबर २०१२ में देहली की सडकों पर एक गैंगरेप हुआ था, और इस गैंगरेप ने देश के मन में मौजूद आंदोलन की चिंगारी को आग में तब्दील कर दिया था । लोग हाथों में मोमबत्तियां और बैनर लेकर, सडकों पर अपने गुस्सा व्यक्त कर रहे थे । और बदलाव की मशाल जला रहे थे । उस समय केवल देहली ही नहीं बल्कि पूरा देश गुस्से में था । क्योंकि देहली की एक बेटी के साथ एक चलती बस में ६ लोगों ने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी थी । सामूहिक बलात्कार की इस वारदात को देश निर्भया गैंगरेप के नाम से जानता है ! हर देशवासी के दिल और दिमाग में १६ दिसंबर २०१२ की ये तारीख एक जख्म के निशान की तरह मौजूद है !
परंतु उस दौर के विरोध प्रदर्शनों में एक व्यक्ति गायब था और वो हैं राहुल गांधी । आप इन तस्वीरों में राहुल गांधी को ढूंढने का प्रयास कीजिए । आप बहुत जोर लगा लेंगे, तो भी राहुल गांधी आपको इन तस्वीरों में दिखाई नहीं देंगे । क्योंकि राहुल गांधी की सारी राजनीतिक भावनाएं तब छुट्टी पर थीं । तब केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी, राहुल गांधी, कांग्रेस पार्टी के उपाध्यक्ष थे, परंतु वो कभी भी इन प्रदर्शनों में शामिल नहीं हुए !
परंतु अब समय बदल चुका है । अब राहुल गांधी और उनकी पार्टी विपक्ष में बैठे हैं । इसलिए उनके पास रेप की घटनाओं के खिलाफ कैंडल मार्च करने की सुविधा है । कल रात इंडिया गेट पर अंधेरे में राजनीति के नये नये रंग बिखर रहे थे ।
कल रात ९ बजकर ३९ मिनट पर राहुल गांधी ने एक ट्विट किया । और लोगों को आधी रात को इंडिया गेट पहुंचने के लिए कहा !
तस्वीरें देखकर ऐसा लगता है जैसे कांग्रेस पार्टी के तमाम बडे बडे नेता और कार्यकर्ता उनके इस ट्विट का इंतजार कर रहे थे !
इसके बाद तुरंत इंडिया गेट पर नेताओं और कार्यकर्ताओं की भीड जुटनी शुरू हो गई । हाथों में मोमबत्तियां लेकर ‘मिड नाईट’वाली राजनीति करने के लिए कांग्रेसी कार्यकर्ता इंडिया गेट पर पहुंच चुके थे । इन कार्यकर्ताओं के साथ लोगों की ऐसी भीड भी थी, जो सेल्फीज लेकर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर रही थी !
राहुल गांधी के साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी और उनके जीजा रॉबर्ट वाड्रा भी थे । कांग्रेस के बडे बडे नेता, मीडिया के कैमरों के सामने आ चुके थे । करीब डेढ घंटे ये मार्च निकाला गया । और फिर कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता जलती हुई मोमबत्तियों और भावनाओं को वहीं पर छोडकर घर चले गए !
सोशल मीडिया में कांग्रेस के पक्ष में कई हैशटैग ट्रेंड कर रहे थे । और रेपकांड के खिलाफ शुरू हुआ कांग्रेस का ये प्रदर्शन ऐसे #हैशटैग्ज के साथ ही खत्म हो गया । अक्सर ऐसे प्रदर्शनों में #हैशटैग के ट्रेंड होने को, उस मुहिम की सफलता मान लिया जाता है । जबकि जमीनी हकीकत इससे उल्टी होती है । लोगों के दिलों में भावनाएं ट्रेंड करती हैं, हैशटैग नहीं !
निर्भया के गैंगरेप के बाद जब प्रदर्शन होते थे, तो उन्हें देखकर ऐसा लगता था कि देश बदल जाएगा । भारत में अब रेप नहीं होंगे और पूरा समाज और सिस्टम ऐसे मामलों में झिरो टोलरन्स पॉलिसी अपनाएगा ! परंतु वो २०१२ था, ये २०१८ है, सब कुछ वैसा ही है, कुछ नहीं बदला । ये कानूनी समस्या तो है ही, ये एक सामाजिक समस्या भी है !
ये बहुत दुख की बात है कि हमारे देश में जब किसी प्रदर्शन या मुहिम को कवर करने के लिए ढेरों टीवी कैमरे होते है । तो वहां हजारों की संख्या में लोग जुट जाते हैं । नेता भी ऐसे मौकों का उपयोग अपनी राजनीति को चमकाने के लिए करते है । और मीडिया के कुछ पत्रकार ऐसी घटनाओं की कवरेज करके महान बन जाते हैं और अवॉर्ड भी जीत लेते हैं । परंतु जिस समस्या को दूर करने के लिए ये सब होता है, वो समस्या वैसी की वैसी ही बनी रहती है ! २०१२ में भी ऐसा हुआ था, और अब भी यही हो रहा है !
क्या हमारे देश में आंदोलन केवल कैमरे के सामने अपना एजेंडा चमकाने के लिए होते हैं ? क्या केवल हेडलाइन का हिस्सा बनने के लिए और अखबारों में तस्वीर और नाम छपवाने की चाह में आंदोलन और क्रांति जैसे भारी भरकम शब्दों का उपयोग किया जाता है ? आखिर कोई मुद्दा या कोई घटना मीडिया और नेताओं के लिए कैसे बडी या छोटी हो जाती है ?
इन सवालों पर भी विचार किया जाना चाहिए !
स्त्रोत : झी न्यूज
स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि, इस देश की दुर्दशा दुर्जनों की दुर्जनता से नहीं, बल्कि सज्जनों की निष्क्रियता से हुई है ! समाज का यही दोहरा चरित्र कठुआ में हुए गैंगरेप और हत्या की घटना में देखने को मिल रहा है । कठुआ में ८ साल की बच्ची के गैंगरेप और मर्डर के खिलाफ ३ महीने बाद देश जागा है । पूरे देश में प्रदर्शन हो रहे हैं । राजनेताओं से लेकर अभिनेताओं तक सभी अपना आक्रोश दिखा रहे हैं । कोई सडकों पर ‘मिड नाईट’ मार्च करके विरोध कर रहा है, तो कोई सोशल मीडिया पर पीडित लडकी के पक्ष में हाथों में पोस्टर लेकर तस्वीरें पोस्ट कर रहा है । इन विरोध प्रदर्शनों ने एक बार फिर आज से साढे पांच साल पहले की यादें ताजा कर दी हैं !
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